हरिद्वार जिले के एक थाने में थानेदार का कप्तान जैसा जलवा, बिना अनुमति के थानेदार से नहीं मिल सकते फरियादी

खबर डोज, हरिद्वार। हरिद्वार जिले के एक थानेदार का कप्तान के प्रोटोकाल जैसा जलवा है, जो कि मित्र पुलिस की भूमिका पर कई बड़े सवाल खड़े कर रहा है। अब सवाल यह उठता है कि जब फरियादियों को अनुमति लेकर ही थानेदार से मिलना है, तो मित्र पुलिस का स्लोगन ही बंद कर दिया जाना चाहिए। कप्तान से मिलने के लिए अनुमति लेना समझ में आता है, लेकिन थानेदार से मिलने के लिए अनुमति लेने की बात गले से नीचे नहीं उतरती है।
दरअसल, जिले के एक थाने में जब एक व्यक्ति शिष्टाचार भेंट करने पहुंचा, तो थानेदार के गेट के बाहर खड़े बिना वर्दी के पुलिसकर्मी ने उसे रोकते हुए पूछा कि कौन है भाई, ऐसे कहां अंदर जा रहा है पहले साहब को बताना पड़ेगा, उसके बाद भेजूंगा। पुलिसकर्मी के इस रवैये से यह साफ हो गया है कि जब आम आदमी थानेदार से थानेदार की बिना अनुमति से नहीं मिल सकता तो पीड़ित फरियादियों को अपनी फरियाद सुनाने के लिए कितने चप्पल घिसने पड़ते होंगे।
उत्तराखंड पुलिस को मित्र पुलिस का स्लोगन दिया गया है, लेकिन पुलिसकर्मी के इस रवैये यह साफ हो है कि पुलिस का आम लोगों से मित्रता पूर्ण व्यवहार नहीं, बल्कि वही अमर्यादित व्यवहार है, जिससे फरियादी भी थाने में आने से पहले 100 बार सोचता है।
ड्यूटी पर बिना वर्दी के रहते हैं हेड कांस्टेबल साहब
थाने में थानेदार हो और उनका कर्मचारियों में भय न हो तो थानेदार का थाने में रहना न रहना बराबर है। जब थानेदार के सामने ही ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी वर्दी नहीं पहनेंगे तो फिर कब पहनते हैं। वर्दी से परहेज करने वाले ऐसे पुलिसकर्मी के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई अमल में लानी चाहिए।

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