नए डीजीपी को लेकर चर्चा तेज, दीपम सेठ के आने के साथ चर्चाओं की भी हुई वापसी

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देहरादून। दीपम सेठ के तत्काल रिलीव होने से डीजीपी के चयन के संबंध में चर्चाएं शुरू हो गई हैं। दीपम सेठ जनवरी में महानिदेशक यानी डीजी पद पर पदोन्नत भी हो जाएंगे।

जानकारी के मुताबिक एडीजी दीपम सेठ प्रतिनियुक्ति अवधि बीच में छोड़कर शासन की मांग पर उत्तराखंड वापस आ रहे हैं। गृह सचिव ने शुक्रवार को ही उन्हें मूल कैडर में वापस भेजने के लिए पत्र लिखा था। अगले दिन शनिवार को उन्हें सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) से रिलीव कर दिया। जिसके बाद से डीजीपी के चयन को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। दीपम सेठ जनवरी माह में डीजी पद पर पदोन्नत भी हो जाएंगे। वरिष्ठता के हिसाब से अब उनसे ऊपर कोई नहीं है।

केंद्र सरकार ने ऐसे पांच राज्यों के लिए नियमों में शिथिलता दी थी, जहां पर डीजी रैंक के पुलिस अफसर नहीं हैं। इनमें 25 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके एडीजी रैंक के अधिकारियों का ही पैनल डीजीपी के लिए मांगा था। इस दायरे में प्रदेश के पांच एडीजी रैंक के अधिकारी आ रहे थे। इनमें सबसे वरिष्ठ दीपम सेठ हैं।

जानकारी के मुताबिक शिथिलता के नियमों के आधार पर पिछले साल 30 नवंबर को एडीजी अभिनव कुमार को कार्यकारी डीजीपी चुन लिया गया। हालांकि, उस वक्त यह बात भी उठी कि अभिनव कुमार का मूल कैडर उत्तर प्रदेश है।

जानकारी के मुताबिक एक वर्ष के अंतराल में कई बार इस तरह की चर्चाएं हुईं कि यहां पर स्थायी डीजीपी की नियुक्ति होनी है। कई राज्यों को सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकारी डीजीपी की व्यवस्था पर फटकार भी लगाई। ऐसे में अक्टूबर में फिर से पैनल यूपीएससी को भेजा गया। उस वक्त भी अभिनव कुमार का नाम इस पैनल में शामिल नहीं हो सका।

जानकारी के मुताबिक गृह सचिव शैलेश बगौली ने दीपम सेठ को मूल कैडर उत्तराखंड भेजने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। उनके पत्र के अगले ही दिन भारत सरकार ने उन्हें तत्काल प्रभाव से रिलीव भी कर दिया है। इस संबंध में अंडर सेक्रेटरी भारत सरकार की ओर से आदेश भी जारी कर दिया गया है।

जानकारी के मुताबिक कार्यवाहक डीजीपी अभिनव कुमार ने गृह सचिव शैलेश बगौली को डीजीपी के चुनाव की प्रक्रियाओं को बताते हुए पत्र भी लिखा था। उन्होंने उत्तर प्रदेश की तर्ज पर डीजीपी नियुक्त करने की सिफारिश की थी। इसके लिए शासन स्तर पर ही समिति बनाई जानी थी। डीजीपी के चुनाव के लिए यूपीएससी की दखल को भी उन्होंने गैर जरूरी बताया था। इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड पुलिस अधिनियम 2007 के नियमों का भी हवाला गृह सचिव को दिया था। बताया गया था कि शासन खुद दो साल के लिए उपयुक्त अधिकारी को डीजीपी बना सकती है। इसका प्रावधान पहले से ही एक्ट में है।

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