इंस्टिट्यूट इनोवेशन सेल,ग्रीष्मकालीन इंटर्नशिप प्रोग्राम में विभिन शीर्षकों पर हुआ व्याख्यान

ख़बर शेयर करें -


श्रीनगर गढ़वाल। 1 जून से 26 जुलाई तक चल रहे आठ साप्ताहिक ग्रीष्मकालीन ऑनलाइन इंटर्नशिप प्रोग्राम के तहत इंस्टिट्यूट इनोवेशन सेल ,हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड द्वारा विभिन्न विषयों पर चार व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के प्रथम मुख्य वक्ता डीएवी कॉलेज ऑफ एजुकेशन, पंजाब शिक्षा विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अजय खोसला जी थे । इनके व्याख्यान का शीर्षक था समकालीन परिदृश्य में तनाव प्रबंधन। इन्होंने अपने व्याख्यान का आरंभ विश्व हैप्पीनेस रिपोर्ट के माध्यम से किया और कहा कि भारत, अभी भी वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में स्ट्रेस अर्थात तनाव के कारण हमारे देश का स्थान नीचे है। डॉ खोसला जी ने अपने व्याख्यान में या बताया कि खुश रहना ही जीवन का सही रूप है ।इन्होंने तनाव रहने के कारणों को विस्तार से बताया और कैसे तनाव मुक्त जीवन जीना चाहिए इसको भी उदाहरण द्वारा बड़े ही विस्तार से बताया। डॉ खोसला जी ने यह कहा कि कोई भी कार्य को लक्ष्य बनाकर करने से तनाव कम होता है तनाव कम करने के विभिन्न तरीके जैसे मेडिटेशन करना ,योग करना, प्राणायाम करना,मन को प्रसंचित रखना तथा अपने आप को तनाव मुक्त कैसे करें इसके बारे में बड़े विस्तार से बताया । उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व का निखार भी तभी हो सकता है जब वह तनाव मुक्त जीवन जिए ।इन्होंने अपने व्याख्यान में सोक्रेटस के ट्रिपल फिल्टर टेस्ट के उदाहरण द्वारा तनाव को कैसे पहचाने उस पर भी बताया । आज के आधुनिक परिपेक्ष में तनाव के मामले दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं उस तनाव से कैसे कम हों, इसको विभिन्न तरीकों से बताया।इसी क्रम में दूसरे मुख्य वक्ता श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली के शोध विभाग के विभागाध्यक्ष आचार्य शिव शंकर मिश्रा जी थे ।इनके व्याख्यान का शीर्षक था संस्कृतवांग्मय में शोध प्रविधि के सूत्र ।इन्होंने इस विषय पर प्रतिभागियों को विस्तार पूर्वक मार्गदर्शन किया। आचार्य मिश्र ने भारतीय शोध पद्धति के बारे में दो भागों में विस्तार पूर्वक चर्चा किया प्रथम भाग के अंतर्गत वैदिक साहित्य से पाणिनि के काल तक के बारे में बताया व द्वितीय भाग में पाणिनि के काल से अब तक के काल को विस्तार से बताया। आचार्य मिश्र ने संस्कृत की शास्त्र परंपरा को शोध प्रविधि का श्रेष्ठ उदाहरण देते बताते हुए कहा कि “त्रिविधा शास्त्रस्य प्रवृत्ति “उद्देश, लक्षण तथा परीक्षा ।शास्त्र के अनुबंध चतुष्टय विषय ,अधिकारी ,संबंध तथा प्रयोजन भी प्रविधि का ही उदाहरण है। आचार्य मिश्र ने तंत्रयुक्ति अर्थात शास्त्र लेखन के 39 तत्वों का उल्लेख किया जिसका ज्ञान होने से वैज्ञानिक ग्रंथ प्रणयन किया जा सकता है ।साथ ही इन्होंने भाषा विज्ञान की चर्चा करते हुए पाणिनि के अष्टाध्यायी के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि 14 माहेश्वर सूत्रों की ननीव पर लगभग 4000 सूत्रों का वर्णन करके महर्षि पाणिनि ने समग्र संस्कृत भाषा को सुस्थिर कर दियाlशोध प्रविधि का उल्लेख करते हुए आचार्य मिश्र ने वैदिक साहित्य तथा पाणिनि पश्चात संस्कृत साहित्य में अनुस्यूत सूत्रों का उल्लेख किया ।उन्होंने कहा कि संहिता के पश्चात ब्राह्मणग्रंथ, आरण्यक तथा उपनिषद उत्तरोत्तर शोध का ही परिणाम है। दर्शनशास्त्र का उद्वविकास भी शोध का ही प्रतिफल है चाहे वह सांख्य दर्शन हो या फिर योग ,न्याय ,वैशेषिक, मीमांसा, वेदांत ,जैन ,बौद्ध तथा चार्वाक दर्शन का पल्लवन किसी ने किसी समस्या के समाधान के लिए ही हुआ है ।उन्होंने अपने वक्तव्य में नई शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान शोध कार्य में वेदों और शास्त्रों का भी वर्णन किया जाना जरूरी है नई शिक्षा नीति में यह विवरण किया गया है कि शोध कार्यों में भारतीय शुद्ध पद्धतियों का भी उल्लेख किया जाना आवश्यक है नई शिक्षा नीति के तहत हमें अपने समस्त शास्त्रों का अध्ययन करके आगे बढ़ना है ।समस्त ज्ञान विज्ञान में भारतीय आचार्य विद्या विद्वानों का योगदान रहा है इसको शोध कार्य के माध्यम से जानना चाहिए उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय विद्वानों ने अपने अपने अनुसंधान में क्या क्या भूमिका बताए हैं इसको शोध कार्य के माध्यम से जानना चाहिए। इसी क्रम में तीसरे मुख्य वक्ता डॉल्फिन पीजी इंस्टीट्यूट आफ बायोमेडिकल एंड नेचुरल साइंस, देहरादून के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ आशीष रतूड़ी जी थे इनके व्याख्यान का शीर्षक था बेहतर भविष्य के लिए स्थानीय स्तर पर वैश्विक मानसिकता विकसित करने के तरीके ।इन्होंने अपने व्याख्यान में यह बताया की लोकल माइंडसेट से ग्लोबल माइंड सेट में कैसे अंतरण किया जा सकता है इन्होंने अपने व्याख्यान में बताया की ग्लोबल माइंड सेट क्या है ,इसका उद्देश्य क्या है तथा वर्तमान में इसके क्या क्या लाभ हैं। व्याख्यान श्रृंखला के चौथे व अंतिम मुख्य वक्ता ह्यूमैनिटी एंड सोशल साइंस विभाग ,ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी ,देहरादून की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर रुकमणी थीं। इनके व्याख्यान का शीर्षक का विकास पर्यावरण एवं उत्तराखंड। इन्होंने अपने व्याख्यान का आरंभ उत्तराखंड राज्य के विकास से किया ।इन्होंने यह बताया कि उत्तराखंड राज्य स्थापित हो जाने के उपरांत राज्य का विकास किस प्रकार हुआ ,व हो रहा है। इन्होंने अपने व्याख्यान में उत्तराखंड राज्य के भौगोलिक विकास पर भी चर्चा किया साथ ही यह बताया की विकास होने के साथ-साथ पर्यावरण का भी संरक्षण किया जाना जरूरी है इन्होंने अपने वक्तव्य में सस्टेनेबल डेवलपमेंट के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी साथ ही विकास व पर्यावरण के संदर्भ में विभिन्न संस्थानों में ऑनलाइन व दूरस्थ पाठ्यक्रमों के बारे में भी जानकारी प्रदान किया। ग्रीष्मकालीन ऑनलाइन प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे कई प्रतिभागियों ने भी अपने अपने प्रश्नो को सभी मुख्य वताओं के समक्ष रखा। ।कार्यक्रम का संचालन आई आई सी ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण प्राप्त कर रहीं प्रतिभागी डॉ गजाला व पाखी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया । अध्यक्षीय भाषण इंस्टीट्यूट इनोवेशन सेल के अध्यक्ष प्रोफेसर अतुल ध्यानी द्वारा दिया गया ।धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के समन्वयक डॉ सुधीर कुमार चतुर्वेदी द्वारा दिया गया।इस कार्यक्रम में आई आई सी के उपाध्यक्ष डॉक्टर आलोक सागर गौतम, कार्यक्रम संयोजक डॉ आशुतोष गुप्ता,डॉ देवेंद्र सिंह, पर्यवेक्षक प्रोफेसर आर. यस. नेगी , प्रोफ़ेसर वीणा जोशी,डॉ विनीत कुमार मौर्या,डॉ मनीषा निगम,डॉ स्वेता वर्मा,डॉ बबिता, आदि समस्त इन्टरशिप प्रोग्राम के पर्यवेक्षक तथा इंस्टिट्यूट इनोवेशन सेल के छात्र सदस्य अंशुल देवली ,निखिल,वीर प्रताप , संदीप सिंह रावत ,अछिता व ऑनलाइन ग्रीष्मकालीन प्रोग्राम में देश के विभिन्न राज्यों से पंजीकृत समस्त प्रतिभागी उपस्थित थे।

You cannot copy content of this page