सुप्रीम कोर्ट: अंतर धार्मिक जोड़े के बीच विवाह हिंदू मैरिज एक्ट के तहत अमान्य, केवल हिंदुओं पर लागू

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एंक अंतर धार्मिक जोड़े के बीच विवाह हिंदू मैरिज एक्ट के तहत नहीं आता है और केवल हिंदू ही इस कानून के तहत विवाह कर सकते हैं। तेलंगाना हाई कोर्ट के अगस्त 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह टिप्पणी की। इसी के साथ अदालत ने मामले की सुनवाई फरवरी तक टाल दी।
तेलंगाना हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत कार्यवाही रद करने से इन्कार कर दिया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अनुसार, जो कोई भी पति या पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी करेगा तो वह विवाह अमान्य होता है। इसके दोषी को सात वर्ष तक के कारावास और आर्थिक दंड का प्रविधान है।
धारा 494 के तहत शिकायत
हैदराबाद में याचिकाकर्ता के खिलाफ 2013 में आइपीसी की धारा 494 के तहत एक शिकायत दर्ज कराई गई थी। इसमें आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ता का विवाह फरवरी 2008 में हिंदू संस्कार के अनुसार शिकायतकर्ता से हुआ था, जिससे उनकी शादी 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हुई थी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है और उसने कोई अपराध नहीं किया है। यह आरोप भी सही नहीं है कि उसने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की है। याचिकाकर्ता ने खुद को एक ईसाई के रूप में दर्शाया जबकि शिकायतकर्ता एक हिंदू है।

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