हरिद्वार में सॉल्वेंट की गुणवत्ता पर विशेष सेमिनार में दवा कंपनियों को दिए गए कड़े निर्देश

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हरिद्वार। हरिद्वार स्थित हयात होटल में दवाइयों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले सॉल्वेंट की गुणवत्ता जांच और मानकों के अनुरूप टेस्टिंग को लेकर एक विशेष सेमिनार आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में देश के प्रमुख सॉल्वेंट निर्माता—दीपक फर्टिलाइजर्स, अदानी और मनाली ग्रुप—ने भाग लिया और दवा निर्माण में सॉल्वेंट की भूमिका पर विस्तृत जानकारी साझा की।

ड्रग्स इंस्पेक्टर ने दिए सख्त निर्देश

सेमिनार का शुभारंभ हरिद्वार की ड्रग्स इंस्पेक्टर अनीता भारती और मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस दौरान अनीता भारती ने दवा निर्माताओं को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि कच्चे माल और सॉल्वेंट की खरीद से पहले उनकी भौतिक जांच अनिवार्य रूप से कराई जाए, ताकि नकली सप्लाई को रोका जा सके।

उन्होंने बताया कि दवाओं की गुणवत्ता में एपीआई (Active Pharmaceutical Ingredient), सॉल्वेंट और एक्सिपिएंट की उच्चतम गुणवत्ता आवश्यक है। हाल के वर्षों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां निम्न गुणवत्ता के कारण दवाओं के सैंपल फेल हुए हैं, जिससे गंभीर घटनाएं भी देखने को मिली हैं। इसे रोकने के लिए कंपनियों को मानकों के आधार पर टेस्टिंग कर प्रमाणित उत्पाद ही बाजार में उतारने होंगे।

फार्मा कंपनियों और ड्रग्स कंट्रोल विभाग की भागीदारी सेमिनार में देश की नामी फार्मा कंपनियों, ड्रग्स कंट्रोल विभाग, हरिद्वार-रुड़की सहित विभिन्न राज्यों के दवा निर्माता और सॉल्वेंट विशेषज्ञ शामिल हुए। एफडीए महाराष्ट्र के सेवानिवृत्त अधिकारियों और सॉल्वेंट इंडस्ट्री के विशेषज्ञों ने भी व्याख्यान दिया। प्रतिनिधियों ने दवा निर्माण की प्रक्रिया, कच्चे माल के चयन, सीडीएससीओ (CDSCO) के मानकों, और प्रभावी सैंपलिंग प्रक्रिया पर विस्तृत चर्चा की। दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए फार्मा कंपनियों को वैज्ञानिक और ठोस प्रयोगशाला नियंत्रण अपनाने की सलाह दी गई।

नकली दवाओं और सॉल्वेंट पर रोकथाम की जरूरत कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 में संशोधन कर दवाओं पर H2/QR कोड लगाना अनिवार्य किया गया है। इससे नकली दवाओं पर रोक लगेगी और उपभोक्ताओं को असली दवा मिल सकेगी।

सीडीएससीओ ने हाल ही में कई दवाओं के सैंपल फेल होने की रिपोर्ट जारी की थी, जिनमें पैरासिटामोल, पैन-डी, कैल्शियम और विटामिन डी3 सप्लीमेंट्स, मधुमेह रोधी दवाएं शामिल थीं। इसके चलते सरकार अब फार्मा कंपनियों पर सख्ती बढ़ा रही है।

नई गाइडलाइंस और सख्त निगरानी

स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में दवा उत्पादन से जुड़ी नई गाइडलाइन जारी की है, जिसके तहत अब भारतीय फार्मा कंपनियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों का पालन करना अनिवार्य होगा। नई गाइडलाइन के अनुसार—कंपनियों को अपने उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करनी होगी।

खराब दवाओं को वापस लेने के लिए लाइसेंसिंग अथॉरिटी को सूचना देनी होगी। कंपनियों को फार्माकोविजिलेंस सिस्टम अपनाना होगा, जो दवा की गुणवत्ता पर निगरानी रखेगा। Revised GMP (Good Manufacturing Practices) लागू की जाएगी, जिससे उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ेगी।

भारतीय दवाओं की गुणवत्ता पर उठे सवाल

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में भारतीय दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कई देशों ने चिंता व्यक्त की है। कफ सिरप से बच्चों की मौत जैसी घटनाओं के बाद सरकार फार्मा इंडस्ट्री की छवि सुधारने की कोशिशों में जुटी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस दिशा में सख्त कदम उठा रहे हैं, ताकि भारतीय दवाओं की गुणवत्ता को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया जा सके।

यह सेमिनार दवा उद्योग में गुणवत्ता सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ, जहां फार्मा कंपनियों और सरकारी विभागों ने मिलकर सुरक्षित और प्रभावी दवा निर्माण पर जोर दिया।

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