चंदा मामा अब दूर के नही बस एक टूर के है: पीएम मोदी

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निमिषा सिंह, नई दिल्ली। भारत ने बुधवार 23 अगस्त को 6 बजकर 4 मिनट पर अंतरिक्ष जगत में एक नया इतिहास लिख दिया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के तीसरे चंद्र मिशन चंद्रयान 3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर जो एक अज्ञात क्षेत्र है जिसे पानी की बर्फ से समृद्ध माना जाता है पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग की।ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए जोहांसबर्ग से देश को संबोधित किया। PM मोदी ने कहा कि ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं राष्ट्र जीवन की चेतना बन जाती हैं। यह पल अविस्मरणीय है। यह क्षण अभूतपूर्व है। यह क्षण विकसित भारत के शंखनाद का है। यह क्षण नए भारत के जयघोष का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया। पीएम मोदी ने कहा कि टीम चंद्रयान, इसरो और देश के सभी वैज्ञानिकों को जी-जान से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। जिन्होंने इस पल के लिए वर्षों तक इतना परिश्रम किया है। उत्साह, उमंग, आनंद और भावुकता से भरे इस अद्भुत पल के लिए मैं 140 करोड़ देशवासियों को भी कोटि-कोटि बधाइयां देता हूं। साथ ही उन्होंने कहा कि अब सूर्य और शुक्र से जुड़े मिशन की बारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंद्रयान-3 के चांद पर लैंडिंग के प्रयास को दक्षिण अफ्रीका से वर्चुअली देख रहे थे। पीएम मोदी इस समय 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका में हैं। भारत के इस मिशन की सफलता पर नासा समेत दुनिया भर से शुभकामनाएं आनी शुरू हो गई है। भारत के चंद्रयान 3 के विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग के लिए देश ही नही विदेशों में भी प्रार्थना का दौर जारी था। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बाद यह उपलब्धि हासिल करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश हो गया है लेकिन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला भारत दुनिया का एकमात्र देश है। ISRO ने इस मिशन में अपने पिछले मिशन की गलतियों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का बहुप्रतीक्षित चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था। इस मिशन को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से छोड़ा गया था। इसरो से चंद्रयान-3 को 14 अगस्त की दोपहर 2:35 बजे लॉन्च किया गया था। मून मिशन को ISRO एलवीएम-3 रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा गया। 615 करोड़ की लागत से तैयार हुआ यह मिशन करीब 39 दिन की यात्रा के बाद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की। इसमें लैंडर और रोवर कॉन्फ़िगरेशन भी जोड़े गए हैं।इस मिशन को सफल बनाने में देशभर के कई वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही। चंद्रयान 3 के लांच होने के बाद से इसरो में वैज्ञानिकों की कई टीमें अलग अलग कामों पर लगी हुई थी। कोई चंद्रयान की दिशा देख रहा था तो कोई स्पीड। किसी को तकनीकी खराबी जांच का काम मिला तो कोई वैज्ञानिक चंद्रयान को उतारने का प्लेटफॉर्म तैयार कर रहा था। मैनेज मिशन के तहत यह सब मिनट टू मिनट आधार पर चलता रहा। रॉकेट छोड़ने के बाद तो कई टीमों ने लैंडर से नजर नहीं हटाई। इसरो के कंट्रोल सेंटर में लगभग दो सौ वैज्ञानिकों की टीम पल पल नजर रख रही थी। अगर चंद्रयान 3 की प्लानिंग की बात करें तो उसमें 790 से अधिक वैज्ञानिक शामिल रहे हैं।bचंद्रयान-3 ने चांद पर इतिहास रच दिया। चंद्रयान-3 मिशन की तैयारी में 3 साल 9 महीने 14 दिन लगे। इसरो चीफ डॉ. एस. सोमनाथ के नेतृत्व में संभव कर दिखाया जिनकी बदौलत भारत ने आज इतिहास रच दिया। डॉ. एस सोमनाथ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष होने के साथ इस मिशन को लीड भी कर रहे थे। उन्होंने इस मिशन के लिए बाहुबली रॉकेट के लॉन्च व्हीकल 3 को डिजाइन किया है जिसकी मदद से चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया था। पी वीरमुथुवेल ने बतौर प्रोजेक्टर डायरेक्टर इस मिशन की कमान संभाल हुआ था। उन्हें 2019 में मिशन चंद्रयान की जिम्मेदारी दी गई थी। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के डायेरक्टर और एयरोस्पेस इंजीनियर डॉ. उन्नीकृष्णन के पास इस मिशन के लिए रॉकेट के डेवलपमेंट से लेकर निर्माण की जिम्मेदारी रही। एम शंकरन यू आर राव जो सैटेलाइट सेंटर (URSC) के डायरेक्टर हैं पर इस संस्थान के पास इसरो के सैटेलाइट को तैयार और डिजाइन करने की जिम्मेदारी थी। डॉ. के. कल्पना चंद्रयान-3 मिशन की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं। वह इस प्रोजेक्ट पर पिछले 4 साल से काम कर रही थी।
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग होने के बाद इसरो टीम के एम शंकरन ने कुछ अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि चार साल से हम इसी मिशन के लिए जी रहे हैं। खाते-पीते सोते-जागते बस यही मिशन चल रहा है। इसके लिए इसरो की टीम ने जो प्रयास किए हैं वो अकल्पनीय हैं। मुझे इसरो का हिस्सा होने पर गर्व है। हालांकि पूर्व में इसरो के चंद्रयान-1 और, चंद्रयान-2 की भी लांचिंग हुई थी पर दोनों ही मौक़ों पर नाकामी हाथ लगी थी। चंद्रयान-1 का मून इम्पैक्ट प्रोब, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया जबकि चंद्रयान-2 के लैंडर से सॉफ्ट लैंडिंग के आख़िरी मिनट में सिग्नल मिलना बंद हो गया था। चंद्रयान-2 में सफलता-आधारित डिज़ाइन के बजाय अंतरिक्ष एजेंसी ने चंद्रयान-3 में विफलता-आधारित डिज़ाइन को चुना गया था जिसमें इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि क्या विफल हो सकता है और इसे कैसे सुरक्षित रखा जाए और एक सफल लैंडिंग सुनिश्चित की जाए। इसरो अपने इस प्रयास में सफल रहा और अंतरिक्ष जगत में भारत के वैज्ञानिकों ने इतिहास रच दिया है। 23 अगस्त 2023 की यह तारीख भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गई है।

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