उत्तराखंड राज्य बनने से जीएमओयूलि को हो गया घाटा, पहले ऐसे होती थी कंपनी की बसें
कोटद्वार। उत्तर प्रदेश राज्य से जनता के वृहद आंदोलन के बाद मिले उत्तराखंड राज्य से जहां कई लोग लाभान्वित हुए और कई बड़ी-बड़ी कंपनियों को लाभ मिला, वही कोटद्वार की जीएमओयूलि कंपनी को काफी नुकसान झेलना पड़ा।
जीएमओयूलि कंपनी के अध्यक्ष जीत सिंह पटवाल बताते हैं कि उत्तराखंड राज्य गठन से पूर्व कंपनी की बसें उत्तर प्रदेश राज्य के कोने कोने में संचालित होती थी। बसों के संचालन से कंपनी काफी फायदे में चल रही थी लेकिन अब कंपनी की बसें मात्र उत्तराखंड राज्य तक ही सीमित रह गई हैं। उत्तराखंड राज्य से बाहर जाने के लिए कंपनी की बसों को उत्तर प्रदेश राज्य का टैक्स पे करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि यदि कंपनी की बस नजीबाबाद भी जाती है तो उसे उत्तर प्रदेश राज्य का टैक्स पे करना पड़ेगा।
कंपनी के सचिव विजय पाल सिंह नेगी बताते हैं कि अगस्त 1993 में कंपनी जीएमओयूलि की स्वर्ण जयंती के बाद की स्थिति पर यदि नजर डाली जाए तो कंपनी हर दिशा में तमाम बाधाओं को पार कर अब तक अपने पैरों पर मजबूती से खड़ी है और अनवरत रूप से आम जनता व चार धाम यात्रा में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की लगन से सेवा करती आ रही है। कंपनी केवल वाहन स्वामियों की आजीविका का ही साधन नहीं है बल्कि प्रदेश में तीर्थाटन व पर्यटन के विकास के मुख्य धूरी है। अपनी दैनिक सेवाओं के साथ-साथ चार धाम यात्रा से लेकर मुख्य पर्यटन स्थलों में पर्यटकों एवं आम यात्रियों को परिवहन की व्यवस्था देकर कंपनी मूल देशों की बराबर पूर्ति करती आ रही है। कंपनी की स्थापना के समय जो भी चुनौतियां कंपनी के समक्ष से फोन में 75 वर्ष पूरे करने के पश्चात लगातार बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 1951 में सतपुली में नयार नदी वर्ष 1970 में बेला कूची जोशीमठ में आई बाढ़ से कंपनी उभरी ही थी कि 2013 में केदारनाथ में आई आपदा ने पुनः कंपनी को बुरी तरह से झकझोर दिया। यह वह बुरा समय था जब वाहन स्वामियों का भुगतान समय पर नहीं हो पाया। पेट्रोल पंप भी खाली होने लगे। कर्मचारियों का वेतन देने के लाले पड़ गए और कंपनी का समस्त पद समाप्त हो गया। ऐसे बुरे समय में कंपनी में कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने आपस में मिलकर एक फंड बनाकर कंपनी में अंशदान किया और वाहन स्वामियों के विशेष सहयोग से कंपनी पुनः जीवित हुई। यह एक ऐसा दौर था जिसे कंपनी से जुड़ा कोई भी व्यक्ति याद नहीं करना चाहेगा। इस प्रकार कंपनी के परिवार के अथक प्रयासों का आम यात्रियों व पर्यटकों के आशीर्वाद से पुनः कंपनी पहले की भांति अपने पुराने स्वरूप में लौट आई। आपदाओं के अतिरिक्त बाहरी चुनौतियों से भी कंपनी को लगातार आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। जिनमें मुख्य था छोटी चीजें हैं जो हर रोड पर कंपनी की सेवाओं के समांतर अवैध रूप से संचालित हो रही हैं। जिनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 1990 के पश्चात इनकी अप्रत्याशित वृद्धि के कारण कंपनी को अत्यधिक हानि हो रही है। जिससे कंपनी कई रोड निष्प्रभावी हो गए और इन पर बसें चलनी कम हो गई। कंपनी के अथक प्रयासों से वर्ष 2002 में हिमगिरी एक्सप्रेस सेवा का उदय हुआ। जिससे कंपनी में क्रांतिकारी बदलाव आया जो रूट इन अवैध वाहनों के अनियमित संचालन से छूट गए थे धीरे-धीरे इन मार्गो पर और अन्य लंबी दूरी के मार्ग पर हिमगिरी एक्सप्रेस सेवा के वाहनों का संचालन किया गया। जो आज दैनिक सेवा में आम लोगों का चार धाम यात्रा व अन्य पर्यटक स्थलों के लिए यात्रियों की पहली पसंद है।
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