पढ़िये, प्यारी पहाड़न और दुखियारी पहाड़न की कहानी

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नवल खाली, देहरादून। आजकल उत्तराखण्ड की आबोहवा में प्यारी पहाड़न नाम की बहार है। वाद , विवाद औऱ अपवाद के बाद प्यारी पहाड़न के पक्ष में दिग्गज नेता से लेकर पत्रकार व समाजसेवी उतर आए औऱ रेस्टोरेंट चल पड़ा, लेकिन उत्तराखण्ड के पहाड़ों में दुखियारी पहाड़न की खोज खबर लेने वाला कोई नही है। आइये आपको दुखियारी पहाड़न की व्यथा सुनाता हूँ।दुखियारी पहाड़न को आज भी गर्भावस्था के दौरान पहाड़ो में अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए मीलों की दौड़ लगानी पड़ती है।दुखियारी पहाड़न को आज भी सड़क न होने के चलते गर्भावस्था में डंडी कंडी के जरिये मीलों चलकर अस्पताल पहुंचाया जाता है।दुखियारी पहाड़न आज भी शराब की वजह से अपने पति औऱ बच्चों को अपनी आँखों के सामने बर्बाद होती देखती है।दुखियारी पहाड़न के बेटे पढ़े लिखे होने के बाबजूद भी बेरोजगार घूम रहे हैं। स्वरोजगार के लिए लोन तक नही मिल पा रहा है।दुखियारी पहाड़न की मेहनत से उगाई साग ,सब्जियां ,अनाज आज भी बांदर औऱ सुंवर चट कर जाते हैं पर मजाल इसके उन्मूलन की दिशा में कुछ ठोस कदम उठे हों। दुखियारी पहाड़न क़ई गाँवो में आज भी मीलों चलकर पानी ढो रही है पर समस्या जस की तस बनी हुई है।दुखियारी पहाड़न आज भी जंगलों में घास के लिए भटककर कभी चट्टानों से गिरकर काल का ग्रास बन रही है तो कभी जंगली जानवरों का शिकार बन रही है। आज भी पूरा पहाड़ इन्ही दुखियारी पहाडनो के भरोषे चल रहा है पर न तो इनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार आ रहा है न सामजिक स्थिति में । आखिर कब दुखियारी पहाड़न के लिए भी ऐसे कैम्पेन चलेंगे जिससे वो अपने दुखों से निजात पाएगी??

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