रणवीर एनकाउंटर के बाद शोपीस बन गए उत्तराखंड पुलिस के हथियार
देहरादून। उत्तराखंड पुलिस के लिए 3 जुलाई 2009 का दिन एक काले दिन की तरह है, जब एसओजी व डालनवाला पुलिस ने मिलकर एक 22 वर्ष के युवक को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था। हालांकि बाद में यह पूरा एनकाउंटर फर्जी साबित हुआ। 18 पुलिसकर्मियों को सजा सुनाई गई। आज भले ही इस घटना को लगभग 11 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन इस घटना के बाद न तो कभी उत्तराखंड में कोई मुठभेड़ हुई और न ही किसी पुलिसकर्मी ने अपने हथियारों को बदमाशों पर चलाने की हिम्मत दिखाई।
3 जुलाई 2009 को देहरादून पुलिस ने गाजियाबाद में रहने वाले एमबीए के 22 वर्षीय छात्र रणवीर सिंह को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था। आरोप लगाया गया था कि रणवीर ने और चौकी प्रभारी जीडी भट्ट का दरोगा का पिस्टल छीनने की कोशिश की और इसके बाद वह भाग गया। बाद में रणवीर सिंह को रायपुर थाना क्षेत्र के रिंग रोड में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इस मामले की सीबीआई जांच हुई तो देहरादून पुलिस के 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ कई साक्ष्य एकत्रित हुए। एक अकेले छात्र को कुल 29 गोलियां पुलिस टीम ने मारी जो इस मुठभेड़ को फर्जी बताने में सबसे महत्वपूर्ण सबूत साबित हुआ।
आज यह घटना पुरानी हो चुकी है, लेकिन इन 11 सालों में फिर किसी पुलिसकर्मी ने अपने हथियारों को बदमाशों पर प्रयोग करने का प्रयास नहीं किया। 11 सालों से उत्तराखंड पुलिस के शस्त्रों में जंक लगा हुआ है, चाहे कितने ही दुर्दांत अपराधी पकड़े गए हो, लेकिन मुठभेड़ के नाम पर अब उत्तराखंड पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए हैं।
बता दें कि अभी भी कुछ पुलिसकर्मी देहरादून की सुद्दोवाला जेल में कारावास भुगत रहे हैं।
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