अब सुप्रीम कोर्ट ने जमानत न देने वाले जज को ही सुनाई सजा
नई दिल्ली। जमानत के मामले में जरूरत से ज्यादा सख्त रुख अपनाने को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों पर नाराजगी जाहिर कर चुका है। कुछ ऐसा ही एक बार फिर हुआ जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि सेशन कोर्ट के जज से सभी न्यायिक जिम्मेदारियां छीन ली जाएं और सजा के तौर पर उन्हें अपने न्यायिक स्किल्स को सुधारने के लिए न्यायिक अकादमी में भेजा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह कार्रवाई एक ऐसे जज के खिलाफ की है, जो कि सामान्य से मामले में जमानत नहीं दे रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ऐसे जमानत देने के मामलों में नरमी बरतता रहा है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही कई लोगों को जमानत दी है लेकिन सेशन जज के जमानत न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नाराजगी जाहिर की और जज की क्लास लगा दी। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में न्याय मित्र के तौर पर पेश हुए वकील सिद्धार्थ लूथरा ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच को बताया कि जज सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने ऐसे मामले भी कोर्ट में रखे जिसमें जमानत की अर्जी सेशन कोर्ट के जज ने खारिज कर दी। न्याय मित्र के तौर पर पेश वकील सिद्धार्थ लूथरा ने लखनऊ का एक शादी का केस बताया। इसमें बताया गया कि लखनऊ के सेशल जज ने आरोपी और उसकी मां की याचिका पर उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था। वकील ने कहा कि जबकि उनकी गिरफ्तारी हुई ही नहीं थी। वहीं दूसरा केस गाजियाबाद का था, जहां एक कैंसर पीड़ित को सीबीआई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे बहुत सारे आदेश पारित किए जाते हैं जो कि हमारे आदेशों से मेल नहीं खाते। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले में आक्रोश जाहिर किया और कहा कि कोर्ट में कानून के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं और उसका पालन करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी की हालत को खतरनाक बताया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया, 21 मार्च को हमारे आदेश के बाद भी लखनऊ कोर्ट ने इसका उल्लंघन किया। हमने इस आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट के संज्ञान में भी डाला। हाई कोर्ट को जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए और जजों की न्यायिक कुशलता को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाई कोर्ट को निर्देश दिया की सेशन जज से सारी न्यायिक जिम्मेदारी ले ली जाए और उन्हें न्यायिक अकादमी में ज्ञानवर्धन के लिए भेजा जाए। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि जहां कस्टडी की जरूरत ना हो ऐसे सात साल से कम सजा के प्रावधान वाले केसों में गिरफ्तारी न के बराबर है, अगर कोई आरोपी जांच में सहयोग कर रहा है तो उसे गिरफ्तार न किया जाए और चार्जशीट दाखिल होने पर ही हिरासत में लिया जाए।
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