नई खनन नीति पर फिर सवाल, हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से 8 दिसंबर तक मांगा जवाब

खबर डोज, नैनीताल। उत्तराखंड की नई खनन नीति एक बार फिर न्यायिक जांच के दायरे में आ गई है। मंगलवार को नैनीताल हाईकोर्ट ने इस नीति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार, खनन सचिव, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उधम सिंह नगर के जिलाधिकारी से जवाब तलब किया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि सभी पक्ष 8 दिसंबर तक अपना लिखित पक्ष दर्ज करें। यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. नरेंद्र और जस्टिस सुभाष उपाध्याय की डिवीजन बेंच के समक्ष हुई।
उधम सिंह नगर के बाजपुर क्षेत्र निवासी याचिकाकर्ता रमेश लाल ने जनहित याचिका दाखिल कर 18 सितंबर 2024 को जारी खनन नीति के नोटिफिकेशन को असंवैधानिक करार देते हुए उसे निरस्त करने की मांग की है। याचिका में दावा किया गया है कि नीति में कई गंभीर खामियां हैं, जिनके चलते अवैध खनन को बढ़ावा मिलने का खतरा बढ़ जाता है और पर्यावरण संरक्षण का ढांचा कमजोर पड़ता है।
याचिका में प्रमुख आपत्तियों में यह कहा गया है कि खनन सामग्री के भंडारण (स्टोरेज) के लिए जिलाधिकारी को अंतिम प्राधिकरण बनाना उचित नहीं है। इसके साथ, जिस समिति को स्टॉक की अनुमति देने का अधिकार प्रदान किया गया है, उसमें केवल खनन अधिकारी और तहसीलदार शामिल हैं, जबकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पूरी तरह बाहर रखा गया है। यह व्यवस्था पर्यावरणीय निगरानी को प्रभावहीन बनाती है।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि कृषि योग्य भूमि पर खनन सामग्री रखने की अनुमति देने से अवैध खनन गतिविधियां बढ़ रही हैं और सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंच रहा है। इसके अलावा, धार्मिक स्थलों और आवासीय क्षेत्रों से खनन स्टॉक के लिए मात्र 5 मीटर तथा वन क्षेत्रों से 10 मीटर की दूरी निर्धारित करना सुरक्षा मानकों और पर्यावरणीय दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं है। इन आधारों पर याचिका में स्वतंत्र जांच और नीति की व्यापक समीक्षा की मांग की गई है।
हाईकोर्ट ने सभी संबंधित विभागों को नोटिस जारी करते हुए स्पष्ट किया कि वे निर्धारित समय सीमा के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करें। अदालत की इस सख्ती को देखते हुए राज्य की खनन व्यवस्था और नई नीति पर फिर से बहस तेज होने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में खनन को लेकर पहले भी कई बार विवाद उठे हैं और कई मामले न्यायालय तक पहुंचे हैं। नई नीति पर उठी यह चुनौती एक बार फिर राज्य में खनन नियमन और पर्यावरण संरक्षण के संतुलन को केंद्र में ला खड़ा करती है।

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