कोटद्वार में अवैध भूमि कब्जाने वाला मामला निकला फर्जी, सत्य की हुई जीत

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हाईकोर्ट समेत लगभग आधा दर्जन न्यायालयों में विपक्षी पेश कर चुके थे अपना पक्ष, परिणाम शून्य

कोटद्वार। न्याय पालिका सबूतों और कागजों के आधार पर सुनवाई करती है, यह बात नाकारी नहीं जा सकती है। कोटद्वार नगर निगम क्षेत्र के अंतर्गत पदमपुर मोटाढांक में भूमाफियाओं की ओर से भूमि कब्जाने वाले मामले ने खूब सुर्खियां बटोरी थी, लेकिन इस मामले में कोर्ट ने विरोध कर रहे परिवार के विपक्ष में फैसला सुनाया है। यह मामला विपक्ष की ओर से सात न्यायालयों में सुना जा चुका है, इसके बाद अब फैसला उनके पक्ष में आया है, जिन पर अवैध भूमि कब्जाने का आरोप लगाया गया है।
मंगलवार को पत्रकारों से मुखातिब होते हुए कोटद्वार निवासी अर्जुन सिंह बिष्ट, संतोष और योगेश अग्रवाल ने बताया कि अवैध भूमि कब्जाने को लेकर उन पर लगे आरोप निराधार है। एक षडयंत्र के तहत पदमपुर मोटाढांक निवासी अमित रावत ने अपनी मां माहेश्वरी देवी, सोनिया रावत, भाई प्रदीप रावत और बेटे-बेटी के साथ भूमि कब्जाने का आरोप लगाकर कोतवाली कोटद्वार में धरना प्रदर्शन किया था। इसके उपरांत पीड़ित परिवार ने अपर पुलिस अधीक्षक मनीषा जोशी के कार्यालय में पहुंचा और कहा कि उनकी पदमपुर में 32 बीघा भूमि है, जिस पर क्षेत्र के कुछ भू-माफिया ने कब्जा कर लिया है। बताया कि दो सप्ताह पूर्व भू-माफिया ने उनके घर में घुसकर परिवार को जान से मारने की भी धमकी दी। पीड़ित परिवार ने पुलिस को दी गयी तहरीर में शराब व्यापारी संतोष उर्फ संतू, अर्जुन सिंह बिष्ट, संदीप बिष्ट, जेपी नैनवाल व योगेश सहित 10-15 अज्ञात लोगों से जानमाल का खतरा होने की आशंका भी जताई थी। यह सभी आरोप गलत बताते हुए अर्जुन सिंह बिष्ट ने बताया कि मात्र भूमि कब्जाने के उद्देश्य से यह धरना प्रदर्शन का ड्रामा किया गया था। इस मामले में मात्र आधा बीघा जमीन ही दूसरे पक्ष के पास है। इन्होंने कई न्यायालयों का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनके पक्ष में नहीं आया। जिससे भौखलाकर दूसरे पक्ष ने धरना प्रदर्शन का ड्रामा रचा। उन्होंने बताया कि 14 वर्षों से इस जमीन की रजिस्ट्री हो रखी है। अब इस जमीन को लेकर कोई भी मामला किसी न्यायालय में विचाराधीन नहीं है। अर्जुन सिंह बिष्ट ने बताया कि न्यायालय अपर आयुक्त गढ़वाल मंडल पौड़ी हरक सिंह रावत ने पिछली 16 अगस्त को इस मामले में उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए आदेश किया है कि बलहीन होने के कारण निगरानियां/पुर्न.प्रा.प. निरस्त की जाती है। अवर न्यायालय की पत्रावली लौटाई जाये। इस न्यायालय की पत्रावली आवश्यक कार्यवाही के बाद संचित हो।

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