घोड़ा तांगे कभी थे हरिद्वार की शान, खत्म हो रही पहचान

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यात्री शौकिया करते हैं तांगे की सवारी, पहले थे 300, अब मात्र 10

हरिद्वार। धर्मनगरी में विभिन्न प्रदेशों से रोजाना कई श्रद्धालु ट्रेन और बसों से यहां मां गंगा के दर्शन करने आते हैं। रेलवे स्टेशन के बाहर खड़े तांगे देखकर कई श्रद्धालु उसमें बैठना पसंद करते हैं। तांगे चलाने वाले स्टेशन से बाहर आने वाले यात्रियों से बातचीत कर तांगे तक लाते हैं। जिसके बाद वह हरकी पैड़ी पहुंचाते हैं।

ऋषिकुल निवासी सुरेश चंद ने बताया कि वह पिछले 35 वर्षों से तांगा चलाकर परिवार का भरण पोषण करते हैं। उनकी तीन बेटियां और दो बेटे हैं। तांगे से ही तीन बेटियों का विवाह कर दिया। एक बेटा डेयरी और दूसरा ऑटो चलाता है। सुरेश चंद ने बताया कि तांगे का काम गर्मियों में चलता है। गर्मियों के सीजन में रोजाना 500 से 600 रुपये कमा लेते हैं। जिसमें से कुछ पैसा घोड़े और तांगे की रिपेयरिंग में खर्च हो जाता है। सर्दियों में ऑफ सीजन में तांगे का काम बहुत कम हो जाता है।

हरिद्वार तांगा यूनियन अध्यक्ष जगदीश खत्री ने बताया कि वर्ष 2003-04 तक 300 तांगे होते थे। अब मात्र 15 तांगों के लाइसेंस रह गए हैं। इनमें भी 10 तांगे ही चल रहे हैं। जबकि पांच तांगे शादी-विवाह समारोह में चलते हैं। जगदीश खत्री बताते हैं, पहले तांगे पांच रुपये प्रति श्रद्धालुओं को रेलवे स्टेशन से हरकी पैड़ी ले जाते थे। आज महंगाई के दौर में भी तांगे स्वामियों ने अधिक पैसे नहीं बढ़ाए हैं। आज भी तांगे वाले 20 रुपये सवारी लेकर रेलवे स्टेशन से हरकी पैड़ी तक ले जाते हैं। मोटर गाड़ी के दौर में तांगे पर सिर्फ शौकिया लोग ही बैठते हैं।

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अपर रोड पर आज भी चलते हैं तांगे

हरिद्वार। ऑटो और ई-रिक्शा समेत अन्य चौपहिया वाहनों को पोस्ट ऑफिस तिराहे से पुलिस आगे नहीं जाने देती है। लेकिन तांगें की स्पीड कम होने के चलते उन्हें हरकी पैड़ी तक जाने दिया जाता है। त्यौहारी सीजन के दौरान भीड़-भाड़ अधिक होने के चलते तांगों पर भी रोक लगा दी जाती है।

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